रविवार, 26 दिसंबर 2010

समानांतर रेखाएं ....

कई बार होता है जीवन में ... गहरी निराशा के बीच उम्मीद की एक किरण सा नजर आता है अक्श उसका .... एक विश्वास ....उसका साथ है तो कुछ गलत नहीं होगा ....
"वह " कौन ?
हमारा भ्रम , हमारी कल्पना या हमारा विश्वास .....
हमारी आत्मिक शक्ति जो हमसे अलग खड़ी होकर सही मार्ग पर चलने को निर्देशित करती है ....
या ...ईश्वर का कोई अंश ...
या स्वयं ईश्वर ....
पता नहीं !








दो समानांतर रेखाएं
हमेशा साथ चलती हैं
मगर कभी
आपस में मिलती नहीं
उन्हें पीछे रह जाने का डर नहीं
मुड कर देखने की जरुरत भी नहीं
हाँ ...
और वे कभी एक- दूसरे को
काटती भी नहीं

तुम भी
उसके जीवन की
वही समानांतर रेखा हो ...

हम कभी मिले नहीं
मिलेंगे नहीं
मगर साथ हमेशा होंगे....

ज़ब भी राह कठिन लगी
मैं मुड कर कोई दूसरा रास्ता देखने लगी
कभी पहाड़ों के बीच से होकर निकली
कभी अदृश्य नदियों में समाती हुई भी
मगर हर बार
उस छोर पर कोई रहा
समानांतर रेखा-सा

देखा है आकाशदीप को
गहरे समंदर में
लहरों के तांडव के बीच
भटके मुसाफिरों को रास्ता दिखाते
कितनी दूर से भी
उस टिमटिमाती रौशनी की ऊष्मा
पथिकों को कितनी राहत पहुंचती है
जीवन ऊष्मा से भरपूर
आकाशदीप सी रौशनी मुझ तक पहुंचाते
तुम तो फिर भी रहे
साथ चलते समानांतर .....


तुम्हारा साथ चलना ...तुम सोचते हो
मुझे पता नहीं ....!!
मगर जिस तरह अदृश्य दृष्टि
तुम्हारी मुझ पर
मैंने भी भी छुप कर कई बार देखा
तुम्हे साथ चलते समानांतर ....

साहस , चंचलता
चपलता, अक्खडपन ,
जो भी है मेरे पास
पाया सब मैंने
तुम्हारे साथ ही
चलते समानांतर ........


अव्यक्त ख़ुशी उमंग के बोझ तले
कई बार मन दुखी भी हुआ ...
क्या पाओगे तुम
क्या मिलेगा तुम्हे
इस तरह साथ चलते समानांतर ....

मगर है यही विश्वास ...

जब भी डगमगाए कदम
तुम रहोगे सदा यूँ ही
साथ चलते समानांतर ....


These was no wish in me
for an eye to look at me

There was no wish in me
For an ear to hear me
No wish for an Shoulder either
to cry on
I simply wished for an affectionate soul
And
Thank You GOD that you blessed me with one


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चित्र गूगल से साभार ...


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बुधवार, 8 दिसंबर 2010

जिंदगी और समय .....





जिंदगी और समय
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उससे

लड़ना ...
झगड़ना ...
रूठना ...
चाहे मत मनाना ...
बस ...
कभी अलविदा मत कहना ...
उसने कभी मुड कर नहीं देखा ...
पलट कर देखना उसे आता नहीं ....
रुक जाना उसके वश में नहीं ....
क्या है वह ....!
जिंदगी या समय ...!


रुठते उससे कैसे भला
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किसी बात से खफा नहीं होना
बस मुस्कुरा देना
आदत मेरी कभी नहीं थी ....
रुठते मगर उससे कैसे भला
मनाना जिसकी आदत ही नहीं ...



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चित्र गूगल से साभार ..

















बुधवार, 1 दिसंबर 2010

काँधे मेरे तेरी बन्दूक के लिए नहीं है .....







मैं
नादान
नाजुक
कमजोर
हताश
मायूस
तुम्हे लगती रहू
मगर
याद रख
कांधे मेरे
तेरी बन्दूक के लिए नहीं है ....

छोटे हाथ मेरे
नाजुक अंगुलियाँ
भले होंगी मेरी
भार उठाएंगी
खुद इनका
जरुरत हुई तो ....

जीतना मैं भी चाहूं
तू भी
बस जुदा है
रास्ता तेरा - मेरा
जीतना चाहती हूँ मैं
सम्मान से सम्मान को
प्रेम से प्रेम को .....
जीत स्थायी वही होती है
जो
मिले
दिलों को जीत कर
युद्ध शांति का पर्याय कभी नहीं होता
देख ले
इतिहास के पन्ने पलट कर

आखिर महाभारत से किसने क्या पाया
क्या सच ही....
शांति ....??
कलिंग जीत कर भी
अशोक क्यों चला
शांति की ओर
लाशों के ढेर
कभी आपको नहीं दे सकते
सम्मान ,शांति और प्रेम ...

सिर्फ दे सकते है
घिन
वितृष्णा
नफरत ...
और घबरा कर जो बढ़ेंगे कदम
तो तय करेंगे
राह
सिर्फ
प्रेम और शांति की ही ...




ज्ञानवाणी से

चित्र गूगल से साभार ...